दीपाली की बूर का मज़ा

मेरा नाम विक्की है, मेरी उम्र २५ साल है. बात तब की है जब मैं दिल्ली में रहता था. हमारे पड़ोस में एक पंजाबी परिवार रहता था. परिवार में एक बुजुर्ग, उनका एक लड़का राजेश और लड़की दीपाली थी. दीपाली की उम्र २०-२१ साल होगी. दीपाली बेहद खुबसूरत थी, मानो भगवन ने सांचे में ढाल कर बनाया था. गोरा चिट्टा रंग जैसे दूध में एक चुटकी केसर घोल दिया हो.  ३६- २४- ३८ का बदन, चूचियां एकदम गोल गोल और सख्त, भरे भरे गांड.. जैसे २ बाड़े बड़े बैलून हो. वो अधिकतर सलवार कुर्ता पहनती थी और जब चलती थी तो ऐसा लगता था जैसे २ गेंद आपस में रगड़ रहे हो. जब हसती थी तो गाल में बड़े बड़े डिम्पल पड़ा करते थे जो उसे और भी मादक बनाती थी. पूरा मोहल्ला उसका दीवाना था.. और एक बार उसे चोदना चाहता था.. मेरी भी ऐसी ही ख्वाहिश थी और कई बार सपने में उसे चोद कर मुठ मार चूका था.. हमारा और  दीपाली का घर एकदम सता हुआ था... मेरे छत से उसके घर का आंगन दीखता था..
सितम्बर  का महिना था, रविवार का दिन.. मैं थोड़ी देर को धुप खाने को अपने छत पे गया.. यूँ ही मेरी नज़र दीपाली के आंगन की तरफ उठ गयी.. और मैं चौंक गया.. वह दीपाली नंगी बैठ कर कपडे धो रही थी.. वो उकडू बैठी थी और बदन पे कपडे का एक रेशा भी नहीं था.. मैं तो एकदम से देखता ही रह गया.. दीपाली की चूचियां एकदम गोरी और तानी हुई थी..बीच में गुलाबी निप्पलस  एकदम तने हुए खड़े थे..सारा सरीर एकदम चिकना था.. टांगो के बीच में था जन्नत का दरवाज़ा.. उसकी गुलाबी चूत.   उसका सारा ध्यान कपडे धोने की तरफ था.. दीपाली को ऐसी नंगी हालत में देख कर मेरा लंड एकदम से तन गया.. मानो उसकी हसीं बूर को सलामी दे रहा हो.  मन कर रहा था की अभी नीचे जाऊं  और उसे पटक कर चोद दूं.. मैं काफी देर तक वैसे ही उसे देखता रहा और अपने लंड को दबाता रहा. वो झुक कर कपडे धो रही थी और बार एक कपडे से अपने बूर को रगड़ रही थी.. शायद उसने अभी अभी अपनी झांटे साफ़ की थी. मेरी हालत एकदम ख़राब हो गयी थी, गला एकदम सुख रहा था और टंगे काँप रही थी.. लंड इतना कड़ा हो गया था की दर्द कर रहा था. अचानक उसकी नज़र मेरी तरफ पड़ी और वो दौड़ कर घर के अन्दर भाग गयी.. ये देख कर मैं बहुत दर गया और मैं भी छत से नीचे उतर गया.. मैं बहुत डरा हुआ था की कहीं दीपाली ये बात मेरे घर वालो को न बता दे.. पुरे दिन मैं घर से बाहर नहीं निकला ताकि मुझे उसका सामना न करना पड़े. 
अगले दिन मेरे माता पिता को कहीं बाहर जाना था,, ड्राईवर आया नहीं था इसलिए उन्होंने मुझे कहा की मैं उन्हें कार से स्टेसन छोड़ आऊं. मैं कार निकल ही रहा था की देखा की दीपाली मेरे गहर की तरफ ही आ रही है.. मैं बहुत दर गया.. मम्मी पापा कार में बैठ चुके थे.. इसलिए मैंने कार को जल्दी से आगे बढ़ा दिया और तेज़ी से वहां से निकल गया.. 
जब मैं स्टेसन से वापस आया तो देखा की दीपली मेरे घर के गाते पे ही खड़ी थी.. मेरी तो हालत ही ख़राब हो गयी. जैसे ही मैंने कार रोकी वो दौड़ कार पास में आयी और बोली.." भागने की कोशिश मत करना वरना बहुत बुरा होगा"  मैं हकलाते हुए बोला.. " दीपाली मैं कहाँ भाग रहा हूँ. मैं तुमसे भाग कार कहाँ जाऊंगा.." दीपाली बोली " अभी तो जाते समय मुझे देख कार भाग गया था.. और अभी बातें बना रहा है" मैंने बोला' मुझे कार पार्किंग में लगाने दो फिर घर के अन्दर चल कार आराम से बातें करते है " मैंने कार एक तरफ लगाई और दीपाली के साथ गहर के अन्दर आ गया.. अन्दर घुसते ही मैंने पहले ए सी  चालू किया ,, क्यूंकि मुझे घबराहट में पसीने आने लगे थे.. फिर दीपाली को बोला " बैठ जाओ और बोलो क्या बात है.." मैं एकदम रुआंसा हो गया था. वो बोली " दर मत , मैं तुझे मरूंगी नहीं.. मैं तो तेरे से ये बोलने आयी हूँ की उस दिन छत से क्या देख रहा था " मैं अनजान बनाते हुए बोला " किस दिनन दीपाली.. मुझे तो कुछ याद नहीं"  वो हलकी सी मुश्कुरायी और बोली " साले बनता है.. उस दिन छत से तू मुझे नंगा देख रहा था.. ' मैंने कोई जवाब नहीं दिया . वो फिर बोली ' किसी जवान लड़की को नंगा देखते हुए तुझे शर्म नहीं आती. "  उसको मुश्कुराते देख कर मेरा दर थोडा कम हुआ. मैं बोला " दीपाली तू हो ही इतनी सुन्दर की मैं बस देखता ही रह गया..वैसे मैं बहुत शरीफ हूँ और मैं जान बूझ कर ऐसा नहीं किया " वो बोली " जानती हूँ कितना शरीफ है.. मुझे नंगा देख रहा था और अब शरीफ बन रहा है"  मैं भी झट से बोला.. " दीपाली उसदिन तू अपने टांगो के बीच कपडे से क्या रगड़ रही थी " इसपे वो सरमा गयी और बोली ' धत !!  कहीं जवान लड़कियों से ऐसी बात पूछते है " मैं बोला " फिर किस से पूछते है " तो  वो बोली " मुझे नहीं मालूम '' मैं समझ गया की वो नाराज़ नहीं है.. मेरा डर  ख़तम हो गया था और दीपाली का नंगा बदन याद कर के मेरा लंड फिर से खड़ा हो रहा था . मुझे मस्ती सूझी और मैं फिर बोला  "बताओ न उसदिन तुम क्या रगड़ रही थी " वो मुशकुराती हुई बोली " तू क्या फिर से मुझे नंगा देखना चाहता है " मेरी धड़कने तेज़ हो गयी और मैं बोला " मैं तो तुम्हे हमेशा नंगा ही देखन चाहता था " दीपाली बोली ' क्या तुने पहले किसी लड़की के साथ ऐसा किया है ". मैंने कहा नहीं तो वो बोली.." आजा मेरे पास आज मैं तुझे सब सिखाउंगी " ये कह कर उसने मुझे अपनी बाहों में जकड लिया और मेरे होठ चूमने लगी. मैंने भी उसे अपने बाहों में दबोच लिया और उसके होठो को चूसने लगा. उसकी जीभ मेरे मुह में घुसने की कोशिस कर रही थी.. मैंने अपना मुह थोडा खोला और उसकी जीभ को चूसने लगा..इधर मेरा लंड भी काले नाग की तरह फनफना रहा था और पैंट से बहार आने को बेताब हो रहा था. मैंने एक हाथ बढ़ा कर दीपाली की तनी हुई चुचियों को पकड़ लिया और बड़ी बेदर्दी  के साथ उन्हें मसलने लगा. दीपाली का सारा सरीर भट्टी की तरह तप रहा था और हमारी  गरम सांसे एक दुसरे से टकरा रही थी  मेरा दूसरा हाथ दीपाली की चूतडो को सहला रहा था. दीपाली के मुह से सिस्कारियां निकली चालू हो गयी थी " आह्ह्हह्ह उईईए जरा आराम से जानेमन , मैं कहाँ भागी जा रही हूँ.. इतनी जोर से दबाओगे तो दुखेगा न .." पर मैं अपनी ही मस्ती में था और उसकी चुचियों और चूतडो को वैसे ही मसलता रहा.. उसकी सिस्कारियां सुन कर मेरा लंड और बेताब हो रहा था. फिर मैंने उसकी कमीज़ के बटन खोल कर उसकी कमीज़ उतार दी. अब वो सिर्फ सफ़ेद ब्रा और सलवार में थी. मैं एक हाथ से उसकी चूची को ब्रा के ऊपर से ही मसलने लगा और मेरा दूसरा हाथ उसकी गांड को सहला रहा था. मैंने उसे पलंग पे लिटा दिया और उसके ऊपर चढ़ गया.. मैं इतने जोश में उसके होठों को चूस रहा था की उसका दम घुटने लगा था..और उसके मुह से सिर्फ गु गु की आवाज निकल रही थी. फिर मैंने पीछे से उसकी ब्रा का हुक खोल कर उसके चुचियों को आज़ाद कर दिया.. ब्रा खुलते ही उसकी चूचियां एकदम से ऊपर की तरफ उछली जैसे उन्हें जबरदस्ती दबा कर रखा गया हो और अब वो अपनी आज़ादी का मज़ा ले रही थी. उसकी चूचियां एकदम गोरी, सख्त और तनी हुई थी. उसके निप्पलस ऊपर की तरफ उठे हुए और एकदम गुलाबी थे,, मैंने उसकी निप्पलस को चुसना सुरु किया तो दीपाली कसमसाने लगी उसकी मुह से आवाज़े निकल रही थी " सीईई ओह्ह्हह्ह्ह्ह उईईईइ माँ मर गयी रे.. " इधर मेरा लंड पैंट से बहार आने को उछाल कूद कर रहा था और सलवार के ऊपर से ही उसकी बूर को टक्कर मर रहा था.. मैंने उसकी निप्पलस को चूसते हुए उसकी सलवार का नाडा खोल दिया.. उसने भी कोई देर नहीं की और अपनी गांड उठा कर सलवार खोलने में मेरी मदद की.. अब वोह सिर्फ सफ़ेद रंग की पतली सी पैंटी  में थी. उसकी पैंटी बूर के ऊपर से गीली हो गयी थी.. लगता था की उसकी बूर ने उत्तेज़ना में पानी छोड़ना शुरु कर दिया था. मैंने उसकी बूर को पैंटी के ऊपर से सहलना शुरू की तो वो और मस्ती में आ गयी और बोली .." मुझे तो तुने पूरा नंगा कर दिया है.. अपने भी तो कपडे उतार न जानू.. अपना लंड तो दिखा मुझे"  मैंने एक झटके के साथ अपने कपडे उतार फेके और एकदम नंगा हो गया.. मेरा लंड एकदम खड़ा था जैसे उसे सलामी दे रहा हो. दीपाली एकदम मस्त हो कर बोली " हाए राम तुम्हारा लंड तो बहुत लम्बा और मोटा हाई.. तुम्हारे साथ तो बहुत मज़ा आएगा.. " वो मेरे खड़े लंड को सहलाने लगी. मेरे लंड का सुपाडा एकदम लाल हो रहा था.. मैएँ उसकी पैंटी उतार दी और मेरे सामने उसकी चिकनी गुलाबी बूर थी.. किसी हीरे की तरह चमकती हुई.  फिर मैंने एक उंगली उसकी चूत में डाल दी.. चूत काफी गीली और एकदम चिकनी हो गयी थी.. मैं उसकी बूर में उंगली अन्दर बहार करने लगा.. और कभी कभी उसके बूर के दाने को मसल देता .. उसके मुह से निकालने वाली सिस्कारियां और तेज़ हो गयी... वो आह्ह्ह्ह हैईईईई उफ्फ्फ्फफ्फ़ उफ्फ्फ्फफ्फ़ सीईईईइ कर रही थी. मैं और तेज़ी के साथ उंगली अन्दर बहार करने लगा. थोड़ी देर वो तेज़ी से अपनी कमर हिलाने लगी और अटक अटक कर बोलने लगी  अह्ह्हह्ह सीईईईइ उईईईई म्मम्मम्मम हीई मेरा निकालने वाला हाई जणू.. उई माँ मैं झड़ रही हु.. कह कर वो शांत सी हो गयी.. बेडशीट उसकी बूर से निकलते पानी से गिला  हो गया था. वो थोड़ी देर तक मेरा लंड सहलाती रही.. अब मेरे बर्दाश्त से बहार हो रहा था.. उसे भी मस्ती चढ़ने लगी.. दीपाली बोली.." राजा अब मत तरसाओ.. अपना लौदा मेरी चूत में डाल दो " मैंने उसकी गांड के नीचे तकिया लगाया और उसकी बूर को और उठा दिया.. उसके टांगो को चौड़ा किया और अपने लंड का सुपाडा उसकी बूर के छेद पे रगड़ने लगा.. ऐसा लग रहा था जैसे मैंने अपना लंड किसी आग की भट्टी में रख दिया हो. मैंने अपनी कमर को थोडा ऊपर उठाया और एक जोर के धक्के के साथ पूरा लंड उसकी बूर में पेल दिया.. वो हल्की सी आवाज़ में चिल्लाई.. हैईईई अरीई मर गयी.. मेरी चूत फाड़ दी तुने तो.. " मैं थोड़ी देर के लिए रुका और उसकी चुचियों को चूसने लगा.. थोड़ी देर में उसका दर्द शांत हुआ और वो अपनी गांड हिलाने लगी.. मैं इशारा समझा गया और अपनी कमर उठा उठा कर धक्के मरने शुरू कर दिए.. उसके मुह से मादक सिस्कारियां फूटने लगी.. " सीईई उह्ह्ह्हह्ह म्मम्मम मेरे रजा .. और जोर से छोड़ो .. फाड़ दो मेरी बूर को ... पेलो अपना मोटा लंड पेलो..." मेरे हर धक्के के साथ उसकी सिस्कारियां बढाती जा रही थी.. और मेरा जोश दुगुना होता जा रहा था.. वो भी जोर जोर से पाना गांड उछाल कर मेरे लंड को और अन्दर तक लेने की कोशिश कर रही थी.. उसकी बूर से निकलते पानी के कारण मेरा लंड एकदम गिला हो गया था और फ़च्छ फ़च्छ की आवाज़े कमरे  में गूंज रही थी.. मैंने धक्के लगाने की स्पीड और तेज़ कर दी और एक उंगली उसकी गांड में घुसेड दी.. वो एकदम से उछाल पड़ी और मेरा लंड उसकी गर्भस्य तक पहुच गया.. मेरी शैतानी पे वो हस पड़ी पर मस्ती की खुमारी में कुछ बोल नहीं पाई.. वो अपने गांड को मेरे धक्को के साथ उछाल रही थी.. मै साथ साथ उसकी चुचियों और निप्प्ल्स को भी मसल रहा था. वो अंट शंट  बके जा रही थी.. हाऐईईई और जोर से छोड़ो.. उफ्फ्फ्फ़  सीइसिसिसी   क्या मज़ा आ रहा है.. क्या लंड है तेरा.. मेरी बूर का भोसड़ा बन गया है... फाड़ दे मेरी बूर को... " वो ऐसे ही बके जा रही थी इधर मेरे धक्के तेज़ होते जा रहे थे... मैं पसीने से भीग गया था.. थोड़ी देर बाद मुझे लगा की मैं अब झाड़ने वाला हूँ... मैंने उसे बोला .." दीपाली मेरा वीर्य निकालने वाला है.. मैं लंड बहार निकल रहा हूँ..." वो अपने पैरो को मेरे कमर में लपेट कर बोली " नहीं मेरे चोदु रजा.. अपना माल मेरी बूर में ही दाल दे.. माल अन्दर गिरता है तो ज्यादा मज़ा आता ही.. मैं बाद में गोली खा लुंगी.. तुम चोदो मुझे.."  मैं भी निश्चिंत हो कर धक्के मरने लगा.. १०- १५ धक्को के बाद मैंने अपना सारा वीर्य उसकी बूर में ही उड़ेल दिया... ऐसा लगा जैसे मैं हवा में उड़ रहा हूँ.. चरम सुख की प्राप्ति हो गयी थी.. दीपाली भी झड़ रही थी और उसने अपने नाखुनो से मेरे पुरे पीठ पे खुरच दिया.. मेरे मुह से चीख निकल गयी.. और दीपाली हस पड़ी.. हम दोनों काफी देर तक एक दुसरे से लिपटे हुए ऐसे ही पड़े रहे.. फिर बाथरूम जा कर अपना बदन साफ़ किया.. हामने अपने कपडे पहने और दीपाली जाने लगी... जाते हुए बोली " विक्की डार्लिंग.. तुम्हारे लंड से चुदवा कर मुझे बहुत मज़ा आया है.. अब तो जब भी मौका मिलगे मैं तुमसे ही चुद्वौंगी..." उसके बाद हमे जब भी मौका मुल्ता मैं दीपाली की जम कर चुदाई करता था...